कोलोरेक्टल कैंसर: 45 की उम्र में स्क्रीनिंग, फिर भी खतरा बरकरार

 कोलोरेक्टल कैंसर: 45 की उम्र में स्क्रीनिंग, फिर भी खतरा बरकरार


अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (ACS) के ताजा आंकड़े एक उम्मीद की किरण दिखा रहे हैं: कोलोरेक्टल कैंसर (मलाशय और बड़ी आंत का कैंसर) की स्क्रीनिंग के लिए अनुशंसित उम्र को 50 से घटाकर 45 साल करने का फैसला जान बचा रहा है। 2019 से 2023 के बीच 45-49 साल के लोगों में स्क्रीनिंग दर में 62% की चौंका देने वाली बढ़ोतरी हुई है। इसका सीधा असर यह हुआ है कि इस आयु वर्ग में शुरुआती चरण के कैंसर के निदान (early-stage diagnoses) में 2021 से 2022 के बीच ही 50% की वृद्धि दर्ज की गई है (वॉल स्ट्रीट जर्नल)।

कोलोरेक्टल कैंसर: 45 की उम्र में स्क्रीनिंग, फिर भी खतरा बरकरार

कोलोरेक्टल कैंसर, जिसे आमतौर पर आंत और मलाशय का कैंसर कहा जाता है, दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है। चिकित्सा विशेषज्ञों और स्वास्थ्य संगठनों ने पिछले कुछ वर्षों में इसकी रोकथाम और समय रहते पहचान के लिए स्क्रीनिंग की उम्र 50 से घटाकर 45 साल कर दी है। इसका उद्देश्य था कैंसर के शुरुआती चरण में ही पहचान कर इलाज को आसान बनाना। लेकिन, इसके बावजूद एक बड़ा समूह अब भी खतरे में है, जिसका कारण जागरूकता की कमी, नियमित जांच न कराना और जोखिम कारकों की अनदेखी है।

स्क्रीनिंग की उम्र क्यों घटाई गई?

पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा अध्ययनों से यह साफ हुआ कि 45 से 50 साल के लोगों में भी कोलोरेक्टल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले माना जाता था कि यह बीमारी मुख्यतः 50 साल के बाद ही ज्यादा होती है, लेकिन बदलती जीवनशैली, अनियमित खानपान, मोटापा और शारीरिक गतिविधियों की कमी ने युवाओं में भी इसका खतरा बढ़ा दिया है।
इसी वजह से अमेरिकन कैंसर सोसाइटी और कई अन्य हेल्थ एजेंसियों ने स्क्रीनिंग की उम्र घटाकर 45 साल कर दी।

फिर भी क्यों बरकरार है खतरा ?

  • जागरूकता की कमी – बहुत से लोग 45 साल की उम्र में स्क्रीनिंग की सलाह के बारे में नहीं जानते।

  • डर और संकोच – कई लोग कोलोनोस्कोपी या अन्य जांच प्रक्रियाओं को लेकर झिझक महसूस करते हैं।

  • आर्थिक और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी – ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में स्क्रीनिंग की सुविधा कम उपलब्ध है।

  • जोखिम कारकों की अनदेखी – अस्वस्थ भोजन, धूम्रपान, शराब का सेवन, मोटापा और पारिवारिक इतिहास को गंभीरता से न लेना।

जोखिम में कौन-कौन हैं?

  • जिनके परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर का इतिहास है।

  • जिनकी खानपान की आदतों में फाइबर की कमी और प्रोसेस्ड मीट का ज्यादा सेवन शामिल है।

  • धूम्रपान और शराब का सेवन करने वाले।

  • मोटापे और डायबिटीज़ से पीड़ित लोग।

  • लंबे समय से आंतों में सूजन या क्रोनिक डिजीज़ से ग्रसित व्यक्ति।

स्क्रीनिंग के तरीके

  1. कोलोनोस्कोपी – सबसे भरोसेमंद तरीका, जिसमें आंतों के अंदर कैमरे से जांच की जाती है।

  2. फेकल इम्यूनोकैमिकल टेस्ट (FIT) – मल के सैंपल से खून या असामान्य कोशिकाओं की जांच।

  3. स्टूल DNA टेस्ट – मल के डीएनए में कैंसर संकेतकों की पहचान।

  4. सिग्मॉयडोस्कोपी – बड़ी आंत के निचले हिस्से की जांच।

रोकथाम के उपाय

  • संतुलित आहार – अधिक फल, सब्जियां और फाइबर युक्त अनाज का सेवन करें।

  • व्यायाम – रोजाना कम से कम 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि।

  • धूम्रपान और शराब से बचें।

  • वजन को नियंत्रित रखें।

  • समय-समय पर जांच कराएं, खासकर यदि आप 45 साल से ऊपर हैं या जोखिम समूह में आते हैं।



क्यों है यह खबर इतनी अहम?

  • जान बचाने वाला बदलाव: शुरुआती चरण में पकड़े गए कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज कहीं अधिक आसान, कम जटिल और कहीं ज्यादा सफल होता है। इससे मरीजों के बचने की संभावना काफी बढ़ जाती है और उनके जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर रहती है। ACS की महामारी विशेषज्ञ रेबेका सीगल इसे "रोमांचक" (thrilling) बताती हैं, जिससे मौतों में कमी आने की उम्मीद है।

  • कम इलाज, बेहतर नतीजे: शुरुआती पहचान का मतलब है कम आक्रामक उपचार (जैसे सर्जरी अकेले या छोटे कोर्स), तेज रिकवरी और कम साइड इफेक्ट।

पर एक बड़ी चिंता बरकरार: 45 से कम उम्र वाले "दरारों में फंस" रहे हैं

जहां 45-49 आयु वर्ग में प्रगति उत्साहजनक है, वहीं एक गंभीर समस्या अब भी बनी हुई है:

  • "यंग-ऑनसेट" का बढ़ता खतरा: पूरी दुनिया में, खासकर भारत समेत कई एशियाई देशों में, 45 साल से कम उम्र के वयस्कों में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले चिंताजनक रूप से बढ़ रहे हैं। यह ट्रेंड पिछले कुछ दशकों से लगातार देखा जा रहा है।

  • स्क्रीनिंग गैप: मौजूदा दिशानिर्देश (जो 45 से शुरुआत की सलाह देते हैं) इस युवा आबादी को कवर नहीं करते। इन लोगों के लिए रूटीन स्क्रीनिंग का कोई प्रावधान नहीं है।

  • देरी से पहचान का खतरा: चूंकि युवाओं में इस कैंसर की आशंका कम समझी जाती है, इसलिए लक्षण दिखने पर भी डॉक्टर के पास जाने या जांच कराने में देरी होती है। नतीजतन, इन मरीजों का निदान अक्सर उन्नत चरण (advanced stage) में होता है, जब कैंसर फैल चुका होता है और इलाज मुश्किल व कम प्रभावी हो जाता है।

क्यों बढ़ रहा है युवाओं में खतरा?

सटीक कारणों पर शोध जारी है, लेकिन इन कारकों को प्रमुख माना जा रहा है:

  1. खराब जीवनशैली: प्रोसेस्ड/रेड मीट का अधिक सेवन, फाइबर युक्त भोजन (सब्जियां, फल, साबुत अनाज) की कमी, शारीरिक निष्क्रियता।

  2. मोटापा: बढ़ता हुआ मोटापा (Obesity) एक प्रमुख जोखिम कारक है।

  3. धूम्रपान और शराब: अत्यधिक शराब का सेवन और धूम्रपान।

  4. पारिवारिक इतिहास: करीबी रिश्तेदारों (माता-पिता, भाई-बहन) में कोलोरेक्टल कैंसर या पॉलिप्स का इतिहास होना। कुछ आनुवंशिक सिंड्रोम (जैसे लिंच सिंड्रोम) भी जिम्मेदार हो सकते हैं।

  5. पुरानी सूजन वाली बीमारियां: अल्सरेटिव कोलाइटिस या क्रोहन रोग का लंबे समय तक रहना।

युवा लोग क्या कर सकते हैं? स्क्रीनिंग से पहले भी सजगता जरूरी!

चूंकि 45 से कम उम्र में रूटीन स्क्रीनिंग नहीं होती, इसलिए लक्षणों को पहचानना और तुरंत कार्रवाई करना बेहद जरूरी है:

  • मल में खून आना (Blood in stool): यह सबसे आम और अहम लक्षण है। अक्सर बवासीर समझकर नजरअंदाज किया जाता है।

  • मल त्याग की आदतों में लगातार बदलाव: लंबे समय तक डायरिया, कब्ज, या मल का आकार पतला होना।

  • पेट में लगातार परेशानी: ऐंठन, दर्द, गैस, पेट फूलना।

  • अपूर्ण मल त्याग की भावना: मल त्याग के बाद भी पेट साफ न होने का एहसास।

  • बिना कारण वजन घटना।

  • थकान और कमजोरी (अनीमिया के कारण, खासकर अगर मल में खून आ रहा हो)।


अगर आपको ये लक्षण दिखें, तो क्या करें?
  1. नजरअंदाज बिल्कुल न करें: "युवा हैं, कुछ नहीं होगा" यह सोच खतरनाक है।

  2. तुरंत डॉक्टर से मिलें: गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट (पाचन रोग विशेषज्ञ) या जनरल फिजिशियन से सलाह लें।

  3. पारिवारिक इतिहास बताएं: अगर परिवार में किसी को यह कैंसर या पॉलिप्स रहा हो, तो जरूर बताएं।

  4. जांच के विकल्पों पर चर्चा करें: डॉक्टर आपकी उम्र, लक्षणों और पारिवारिक इतिहास के आधार पर स्टूल टेस्ट (FIT, FIT-DNA), कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy), या अन्य जांचों की सलाह दे सकते हैं, भले ही आप 45 से कम उम्र के हों।

निष्कर्ष: सफलता के बीच एक जरूरी चेतावनी

45 साल पर स्क्रीनिंग शुरू करने का निर्णय निस्संदेह एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य जीत है, जिससे हजारों जिंदगियां बचेंगी। यह शुरुआती पहचान के महत्व को रेखांकित करता है। हालांकि, 45 से कम उम्र के वयस्कों में कोलोरेक्टल कैंसर की बढ़ती दर एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। इस आबादी को वर्तमान स्क्रीनिंग दिशानिर्देशों से "छूट" मिल रही है, जिससे देरी से निदान और बदतर परिणामों का खतरा बढ़ जाता है।

सबसे महत्वपूर्ण संदेश:

  • 45 या उससे अधिक उम्र? तुरंत स्क्रीनिंग शुरू करने के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें! (कोलोनोस्कोपी गोल्ड स्टैंडर्ड है, लेकिन अन्य विकल्प भी हैं)।

  • 45 से कम उम्र के हैं? किसी भी लक्षण को अनदेखा न करें! शरीर के संकेतों को जानें और पहचानें। पारिवारिक इतिहास होने पर विशेष सतर्कता बरतें।

  • जीवनशैली में सुधार करें: स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम, वजन नियंत्रण और धूम्रपान/शराब से परहेज जोखिम कम करने में मददगार हैं।

स्क्रीनिंग की उम्र 45 करने से निश्चित रूप से शुरुआती पहचान और इलाज की संभावना बढ़ी है, लेकिन जब तक लोग खुद जागरूक होकर समय पर जांच नहीं कराते, तब तक खतरा पूरी तरह खत्म नहीं होगा। कोलोरेक्टल कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसे शुरुआती अवस्था में पहचाना जाए तो लगभग पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। इसलिए, 45 की उम्र पूरी होते ही स्क्रीनिंग को अपनी प्राथमिकता बनाएं और सेहत को सुरक्षित रखें।


कोलोरेक्टल कैंसर अक्सर रोके जाने योग्य (पॉलिप्स हटाकर) और इलाज योग्य (शुरुआती पहचान से) है। जागरूकता बढ़ाकर, सही उम्र पर स्क्रीनिंग करवाकर, और लक्षणों को गंभीरता से लेकर हम इस खतरनाक बीमारी के खिलाफ लड़ाई जीत सकते हैं। खासकर युवा पीढ़ी को इस बढ़ते खतरे के प्रति सचेत रहना होगा।

अपनी और अपनों की सेहत का खयाल रखें। जागरूक रहें, स्वस्थ रहें!


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